संपादकीय: बीजापुर की फायरिंग घटना – क्या सुरक्षा व्यवस्था पर उठ रहे हैं गंभीर सवाल?
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले से आई हालिया घटना ने न केवल राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है, बल्कि प्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था पर भी गहरा प्रश्नचिह्न लगा दिया है। भैरमगढ़ नगर में भाजपा जिला उपाध्यक्ष लव कुमार रायडू पर एक पुलिस आरक्षक द्वारा की गई फायरिंग ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि जिन लोगों को सुरक्षा के नाम पर सरकारी बल मुहैया कराया गया है, क्या वे सचमुच सुरक्षित हैं?
इस घटना में राहत की बात यह रही कि लव कुमार रायडू बाल-बाल बच गए और कोई जानमाल की क्षति नहीं हुई, लेकिन यह सौभाग्य हर बार नहीं हो सकता। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, किसी विवाद के चलते आरक्षक ने गुस्से में आकर अपनी सरकारी पिस्टल से फायरिंग कर दी। यह न केवल अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा है, बल्कि पुलिस बल की मानसिक स्थिति और प्रोफेशनलिज़्म पर भी सवाल खड़े करता है।
सवाल यह है कि जिन पुलिसकर्मियों को असलहे दिए जाते हैं, उन्हें पर्याप्त मानसिक प्रशिक्षण और तनाव प्रबंधन की ट्रेनिंग क्यों नहीं दी जाती? जब एक सुरक्षा कर्मी ही सार्वजनिक प्रतिनिधियों के लिए खतरा बन जाए, तो यह केवल एक व्यक्ति की गलती नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की चूक मानी जाएगी।
इसके अलावा, यह घटना उन तमाम सुरक्षा प्रोटोकॉल की समीक्षा की मांग करती है, जो जनप्रतिनिधियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं। क्या उन नियमों का पालन हो रहा है? क्या सुरक्षा में लगे कर्मियों की नियमित जांच, परामर्श और व्यवहारिक मूल्यांकन किया जा रहा है?
यह केवल भाजपा नेता लव कुमार रायडू का मामला नहीं है, यह प्रदेश की राजनीति और लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले हर उस व्यक्ति का मामला है जो अपनी बात रखने के लिए स्वतंत्र और सुरक्षित माहौल की अपेक्षा करता है।
प्रशासन को इस मामले में त्वरित और पारदर्शी जांच करते हुए दोषी पर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी चाहिए और साथ ही, पूरे सुरक्षा तंत्र की पुनर्रचना की आवश्यकता पर विचार करना चाहिए। यह घटना एक चेतावनी है—अगर इसे गंभीरता से नहीं लिया गया, तो अगली बार यह “बाल-बाल बचने” की बात शायद ना हो।
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