रायपुर/जगदलपुर, 16 अगस्त 2025:
बस्तर अधिकार मुक्ति मोर्चा ने वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम द्वारा ईसाई धर्मांतरण और नक्सलवाद के बीच कथित संबंध पर लगाए गए आरोपों को “निराधार और भ्रामक” बताया है। मोर्चा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर नेताम के बयान को आदिवासी समुदाय को “सांप्रदायिक रूप से विभाजित करने वाला” और “संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ” बताया।
हाल ही में नेताम ने दावा किया था कि बस्तर और अन्य आदिवासी इलाकों में ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण नक्सलवाद को बढ़ावा देता है और उन्होंने धर्मांतरित आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची से बाहर करने की मांग की थी। बस्तर अधिकार मुक्ति मोर्चा ने इसे न केवल तथ्यहीन, बल्कि खतरनाक भी बताया है, जिससे आदिवासी समुदायों के भीतर सामाजिक तनाव पैदा हो सकता है।
“राजनीतिक लाभ के लिए मुद्दों से भटकाने की कोशिश”
मोर्चा के मुख्य संयोजक नवनीत चांद ने कहा कि नेताम का यह रुख चौंकाने वाला है क्योंकि वह पहले स्वयं धर्मांतरण के मुद्दे पर ऐसी मांगों का विरोध कर चुके हैं। “यह बदलाव उनके हालिया राजनीतिक रुख और दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़ाव के बाद आया है। इससे उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं,” उन्होंने कहा।
नेताम ने 2023 में कांग्रेस छोड़कर ‘हमार राज पार्टी’ बनाई थी और अब दक्षिणपंथी मंचों से जुड़े देखे जा रहे हैं। मोर्चा का आरोप है कि नेताम की यह बयानबाजी आरएसएस द्वारा लंबे समय से प्रचारित उस नैरेटिव का हिस्सा है, जो ईसाई मिशनरियों को आदिवासी इलाकों में अस्थिरता का कारण बताता है।
“नक्सलवाद का कारण धर्मांतरण नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ”
प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि बस्तर में नक्सलवाद की जड़ें गरीबी, जबरन भूमि अधिग्रहण, खनन से विस्थापन और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम (पेसा) के उल्लंघन में हैं। “मिशनरियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराना इन संरचनात्मक समस्याओं से ध्यान भटकाने जैसा है,” मोर्चा ने कहा।
“धर्मांतरण पर पाबंदी, संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन”
बस्तर अधिकार मुक्ति मोर्चा ने नेताम की उस मांग को भी असंवैधानिक बताया जिसमें उन्होंने धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर करने की बात कही। “भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 हर नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता देता है। किसी की धार्मिक पहचान के आधार पर उसे आरक्षण या अन्य अधिकारों से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन होगा,” प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया।
मोर्चा ने सुप्रीम कोर्ट के 1977 के रेव. स्टैनिस्लॉस बनाम मध्य प्रदेश मामले का हवाला देते हुए कहा कि केवल ज़बरदस्ती धर्मांतरण पर रोक संभव है, प्रचार और व्यक्तिगत रूप से धर्म अपनाना प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता।
“राजनीतिक एजेंडे के तहत आदिवासी एकता को तोड़ने की साजिश”
मोर्चा ने चेतावनी दी कि धर्मांतरण के बहाने आदिवासी समुदायों को बाँटना, विशेष रूप से ईसाई आदिवासियों को अलग करना, न केवल सामाजिक विघटन को जन्म देगा बल्कि इससे आदिवासी एकता भी कमजोर होगी। “नेताम का यह रुख उन राजनीतिक दलों को फायदा पहुँचा सकता है जिनका आदिवासी अधिकारों के प्रति कोई गंभीर कमिटमेंट नहीं है,” बयान में कहा गया।
“असली मुद्दों से भटकाव”
मोर्चा ने अंत में कहा कि नेताम का यह विवादास्पद बयान भूमि अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और पेसा कानून जैसे वास्तविक आदिवासी मुद्दों से ध्यान हटाने की साजिश है। “आदिवासी समुदायों को ज़रूरत है न्याय, समावेशिता और संवाद की — न कि अविश्वास और ध्रुवीकरण की,” मुख्य संयोजक नवनीत चांद ने कहा।
