नगर निगम की कार्रवाई के दौरान 6 साल के कैंसर पीड़ित मासूम की मौत! शव लेकर कलेक्ट्रेट पहुंचे परिजन, प्रशासन के खिलाफ आक्रोश
“अतिक्रमण हटाओ की कीमत एक मासूम की जान से — शव लेकर पहुंचे कलेक्ट्रेट”
रविशंकर गुप्ता | प्रधान संपादक |
बिलासपुर, लिंगियाडीह —
विष्णुदेव साय सरकार के “सुशासन तिहार” के बीच एक अमानवीय घटना ने पूरे शहर को झकझोर कर रख दिया। नगर निगम की अतिक्रमण हटाने की मुहिम के दौरान 6 साल के कैंसर पीड़ित बच्चे की मौत हो गई। बताया जा रहा है कि जब निगम का बुलडोजर इस गरीब परिवार के घर पर चल रहा था, उसी वक्त मासूम ने अपनी अंतिम साँस ली।
बिना पुनर्वास, ढहा दिया आशियाना
लिंगियाडीह-चिंगराजपारा इलाके में सड़क चौड़ीकरण के लिए चल रही नगर निगम की कार्रवाई के तहत संतोष यादव का घर गिरा दिया गया। वह अपने बेटे को इलाज के लिए रायपुर ले गए थे, घर में मौजूद अन्य दो छोटे बच्चों की गुहार को अनसुना कर निगम का बुलडोजर चलता रहा।
संतोष यादव का आरोप है कि पहले केवल एक कमरे को चिन्हित किया गया था, लेकिन पूरे घर को गिरा दिया गया। लौटने पर उन्हें यह मंजर देखने को मिला, और आज कैंसर पीड़ित मासूम की मौत हो गई।
शव लेकर पहुंचे कलेक्ट्रेट, हुआ उग्र प्रदर्शन
मासूम की मौत की खबर से गुस्साए मोहल्लेवासी और परिजन बच्चे का शव लेकर कलेक्ट्रेट पहुंचे और प्रशासन के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया। लोगों की मांग थी कि
- दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई हो।
- गरीबों को पुनर्वास के बाद ही अतिक्रमण हटाया जाए।
- पीड़ित परिवार को मुआवजा दिया जाए।
प्रशासन की सफाई: “हमने मानवीय दृष्टिकोण अपनाया”
नगर निगम ने अपनी सफाई में कहा कि
- परिवार को पहले ही वैकल्पिक आवास (अटल आवास) दिया गया था।
- बच्चा अंतिम स्टेज पर था, मौत सड़क चौड़ीकरण से नहीं जुड़ी।
- संतोष यादव की सहमति से ही सामान शिफ्ट किया गया था।
प्रशासन के मुताबिक, 28 मई को कोई तोड़फोड़ नहीं हुई, और 29 मई को अर्द्धतः खुद ही मकान हटाया गया था।
मासूम की मौत पर राजनीति और सवाल
यह घटना सुशासन तिहार के शोर के बीच सुशासन पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।
- अगर पुनर्वास की व्यवस्था थी तो घर क्यों ढहा?
- क्या गरीबी और बीमारी से जूझते परिवारों के लिए कोई विशेष संवेदनशील नीति नहीं होनी चाहिए?
- मानसून के ठीक पहले हड़बड़ी में सड़क चौड़ीकरण की कार्रवाई क्यों?
कलेक्टर का आश्वासन: “जांच होगी, आर्थिक मदद मिलेगी”
कलेक्टर संजय अग्रवाल मौके पर पहुंचे और आश्वासन दिया कि
- मामले की जांच कराई जाएगी।
- दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
- परिवार को आर्थिक सहायता दी जाएगी।
न्याय की माँग: क्या अब भी सुशासन कहेंगे?
इस दर्दनाक घटना ने एक बार फिर “विकास बनाम संवेदनशीलता” की बहस को जन्म दे दिया है।
प्रशासनिक मशीनरी की हड़बड़ी में अगर मासूमों की जान जाने लगे, तो इसे क्या सुशासन कहा जा सकता है?
रवि शंकर गुप्ता प्रधान संपादक
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