संपादकीय (N.भारत) देश इन दिनों “ऑपरेशन सिंदूर” की सफलता पर गर्व महसूस कर रहा है। इस सैन्य अभियान में भारतीय सेना ने अदम्य साहस और रणनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया। देशभर में तिरंगा यात्राओं और देशभक्ति के नारों के बीच, एक और खबर ने इस गौरव को ठेस पहुंचाई—मध्यप्रदेश के मंत्री कुंवर विजय शाह का शर्मनाक बयान, जिसमें उन्होंने ऑपरेशन से जुड़ी वीर अफसर कर्नल सोफिया कुरैशी को “आतंकी की बहन” कह दिया।
यह बयान सिर्फ एक महिला अफसर या एक समुदाय का नहीं, पूरे देश और उसकी एकता का अपमान है। कर्नल सोफिया कुरैशी, जो तीन पीढ़ियों से फौज से जुड़े परिवार से आती हैं, 25 वर्षों से सेना में सेवा कर रही हैं और संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन जैसी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों को निभा चुकी हैं—उन्हें इस प्रकार से अपमानित करना एक गहरी सोच का परिचायक है, जिसमें धर्म को देशभक्ति का पैमाना बना दिया गया है।
विजय शाह का यह बयान किसी साधारण चूक का परिणाम नहीं, बल्कि एक सुनियोजित नफरती विमर्श का हिस्सा प्रतीत होता है, जहां मंच से बार-बार एक ही झूठ को दोहराकर उसे सच की शक्ल देने की कोशिश की गई। दुर्भाग्यवश, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर इस अपमानजनक टिप्पणी को “उपलब्धि” की तरह प्रस्तुत किया और तालियां बटोरीं।
बाद में दी गई हंसी-मजाक में लिपटी “माफी” से यह मामला खत्म नहीं होता। न तो यह पहली बार है जब मंत्री विजय शाह ने विवादित बयान दिया है, और न ही यह माफी उनके शब्दों की गंभीरता को कम कर सकती है। सवाल यह है कि क्या भाजपा एक बार फिर ऐसे मंत्री के बयानों से किनारा कर सिर्फ चुप्पी साध लेगी, या उदाहरण पेश करेगी?
आज देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कई लोगों पर राजद्रोह और देशद्रोह के मुकदमे चलाए जा रहे हैं। ऐसे में जब एक मंत्री खुले मंच से फौज की अफसर के लिए अपमानजनक, साम्प्रदायिक भाषा का इस्तेमाल करता है, तो क्या उस पर भी वैसा ही कानूनी और राजनीतिक मापदंड लागू होगा? सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार यह मामला स्पष्ट रूप से “हेट स्पीच” की परिभाषा में आता है, और प्रशासन की यह जिम्मेदारी है कि वह स्वत: संज्ञान लेकर मुकदमा दर्ज करे।
कर्नल सोफिया कुरैशी सिर्फ एक मुस्लिम महिला नहीं हैं। वे इस देश की बेटी हैं, एक वीर सैनिक हैं, और भारत की उस विचारधारा की प्रतीक हैं जो विविधता में एकता को जीती है। उनके लिए यह कहना कि वे “आतंकी की बहन” हैं, सिर्फ एक महिला या एक धर्म का नहीं, पूरे भारत की फौज, उसकी गरिमा और संविधान पर हमला है।
भाजपा के लिए अब आत्मचिंतन का समय है। क्या वह अपने ही घोषित सिद्धांतों के साथ खड़ी होगी, या चुनावी समीकरणों और मौन समर्थन के चलते ऐसे नेताओं को छूट देती रहेगी? यदि भाजपा सचमुच राष्ट्रवाद और “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की पक्षधर है, तो उसे इस मंत्री को तत्काल बर्खास्त कर देश के सामने एक स्पष्ट और मजबूत संदेश देना चाहिए—कि नफरत की राजनीति का भारत में कोई स्थान नहीं।
यह वक्त है एक स्पष्ट निर्णय का। देश को जोड़ने वाली आवाज़ों को समर्थन देने का, और तोड़ने वाली सोचों पर निर्णायक कार्रवाई करने का।
– संपादकीय
रवि शंकर गुप्ता
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