RTI कार्यशाला में जनता को बाहर रखने पर सवाल, जागरूक नागरिकों ने जताई नाराजगी
दुर्ग।
राज्य सूचना आयोग द्वारा 20 जून को दुर्ग जिला कार्यालय के सभागार में आयोजित की जा रही सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 पर एक दिवसीय कार्यशाला को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। किसान नेता एवं आरटीआई कार्यकर्ता विनायक ताम्रकार सहित कई जागरूक नागरिकों ने आरोप लगाया है कि यह कार्यशाला केवल अधिकारियों और कर्मचारियों तक सीमित रखी गई है, जबकि आम जनता और सूचना अधिनियम के वास्तविक उपयोगकर्ताओं को इसमें शामिल नहीं किया गया।
विनायक ताम्रकार का कहना है कि इस तरह की कार्यशालाएं जनता को गुमराह करने के हथकंडे बनती जा रही हैं, जहां केवल अधिकारियों को सिखाया जाता है कि किस तरह से सूचना देने से बचा जाए। उन्होंने कहा कि अधिनियम को लागू हुए दो दशक बीत चुके हैं, फिर भी अधिकारी इसे सही से नहीं समझ पाए, यह गंभीर सवाल खड़े करता है।
जन-सत्र की मांग
कार्यशाला में अधिकारियों को प्रशिक्षण देना निश्चित रूप से जरूरी है, लेकिन अधिनियम से जुड़ी असली समस्याएं आम नागरिकों और आवेदकों को होती हैं। ऐसे में कार्यशालाओं में एक “जन-सत्र” अनिवार्य किया जाना चाहिए, जिसमें नागरिक अपनी समस्याएं साझा कर सकें और प्रक्रिया को बेहतर तरीके से समझ सकें।
आयोग की मंशा पर सवाल
सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या आयोग की मंशा सिर्फ अधिकारियों को लाभ देना है? जागरूक नागरिकों का कहना है कि यदि पारदर्शिता और जवाबदेही वास्तव में लक्ष्य है, तो आम लोगों को इससे बाहर रखना न्यायसंगत नहीं है।
समाप्ति में मांग
नागरिकों ने मांग की है कि भविष्य में आयोजित सभी कार्यशालाओं में एक खुला सत्र रखा जाए, ताकि सूचना का अधिकार अधिनियम अपने मूल उद्देश्य की पूर्ति कर सके और जनता सच में सशक्त बन सके।
– N. भारत न्यूज
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