नगर की लाडली साक्षी की मौत बनी सवालों का सिलसिला: डॉक्टर पर लापरवाही का आरोप, राजनीति और प्रशासन की चुप्पी पर उठे सवाल

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तिल्दा-नेवरा।
नगर की एक होनहार बेटी साक्षी निषाद की असमय मौत ने पूरे क्षेत्र को झकझोर दिया है। यह घटना सिर्फ एक परिवार के दुख की दास्तां नहीं, बल्कि तिल्दा-नेवरा में चल रहे अव्यवस्थित और लापरवाह निजी अस्पतालों की पोल खोलती है। पार्षद सतीश निषाद की अठारह वर्षीय बेटी साक्षी के अस्वस्थ होने पर उसे इलाज हेतु एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां कथित तौर पर चिकित्सकीय लापरवाही के चलते उसकी मृत्यु हो गई।

इस हृदयविदारक घटना ने न केवल परिजनों को शोकाकुल किया, बल्कि समूचे नगर में आक्रोश की लहर दौड़ गई। खुद पिता सतीश निषाद ने इस लापरवाही के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए संबंधित विभाग को ज्ञापन सौंपा और दोषी चिकित्सकों व अस्पताल प्रबंधन पर कड़ी कार्रवाई की मांग की। उन्होंने भावुक होते हुए कहा, “मेरी बेटी तो नहीं लौटेगी, पर मैं चाहता हूं कि कोई और बेटी इस सिस्टम की बलि ना चढ़े।”

बड़े सवाल खड़े करती है यह मौत

तिल्दा-नेवरा में निजी अस्पतालों की कार्यप्रणाली पहले भी कई बार संदेह के घेरे में रही है। नर्सिंग होम एक्ट की अनदेखी कर धड़ल्ले से चल रहे अस्पतालों में आमजन के स्वास्थ्य से खुलेआम खिलवाड़ हो रहा है। इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। कुछ समय पहले भी एक बच्चों के अस्पताल और उससे जुड़े मेडिकल स्टोर में गड़बड़ियों की खबर आई थी। जांच के बाद सील कर दिए गए इन प्रतिष्ठानों को मात्र तीन दिनों में ही फिर से खोल दिया गया — और वह भी कथित रूप से कुछ नेताओं की “सिफारिश” पर।

राजनीति और संरक्षण का गठजोड़

सूत्र बताते हैं कि इन अस्पतालों को कुछ सफेदपोश नेताओं का संरक्षण प्राप्त है, जो जांच प्रक्रिया को प्रभावित कर उन्हें बचाने का कार्य करते हैं। यह गठजोड़ प्रशासनिक तंत्र को कमजोर कर चुका है। यही कारण है कि न तो कोई कठोर कार्रवाई होती है और न ही कोई व्यवस्था में सुधार।

कर्ज, आंसू और लूट की त्रासदी

निजी अस्पतालों में मरीजों से की जाने वाली मोटी वसूली की कहानियां आम हो चली हैं। गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार इलाज के नाम पर कर्ज में डूब जाते हैं। बदले में मिलता है लापरवाह इलाज और कई बार तो अपनों की लाश।

अब सवाल यह है —

  • क्यों नहीं होती जांचों में पारदर्शिता?
  • किस दबाव में विभाग मौन रहता है?
  • कब तक चलता रहेगा ये खेल?
  • क्या किसी लाडली की मौत के बाद ही सिस्टम जागेगा?

नगर की साक्षी निषाद अब हमारे बीच नहीं रही, पर उसकी असमय मौत ने उन सभी सवालों को फिर से जगा दिया है, जिन पर हम सालों से आंख मूंदे बैठे हैं।


रिपोर्ट: शैलेश सिंह राजपूत
ब्यूरो चीफ, तिल्दा-नेवरा


 

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