न bharat/ कोरिया जिले में लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्थाओं को लेकर एक महत्वपूर्ण मुद्दा सामने आया है। जिसमें युवा पत्रकार प्रदीप कुमार पाटकर ने सोमवार को जिला दंडाधिकारी, कोरिया को एक औपचारिक ज्ञापन सौंपा, जिसमें उन्होंने सांसद एवं विधायक प्रतिनिधियों की नियुक्तियों को संविधान विरुद्ध बताया और तत्काल प्रभाव से उन्हें मुक्त करने की मांग की। ज्ञापन में प्रदीप पाटकर ने स्पष्ट किया कि सांसद और विधायक प्रतिनिधि जैसे पदों का उल्लेख न तो भारतीय संविधान में किया गया है और न ही लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में इनके लिए कोई प्रावधान है। इसके बावजूद विधानसभा एवं लोकसभा क्षेत्रों में विभिन्न विभागों में ऐसे प्रतिनिधियों की नियुक्तियाँ की जा रही हैं, जो कि संविधान की भावना और नियमों का उल्लंघन है।
सवाल खड़े कर रही है यह व्यवस्था
इस पूरे प्रकरण ने यह बहस छेड़ दी है कि बिना संवैधानिक दर्जे वाले प्रतिनिधियों को किस आधार पर सरकारी बैठकों, योजनाओं और निर्णय प्रक्रियाओं में भागीदारी दी जा रही है। प्रदीप पाटकर के इस कदम को संवैधानिक व्यवस्था की रक्षा हेतु एक गंभीर पहल माना जा रहा है। प्रदीप पाटकर ने कहा कि यह मामला केवल कोरिया ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश और देश में चर्चा का विषय बनना चाहिए। उन्होंने बताया कि यदि जिला प्रशासन इस ज्ञापन पर कार्यवाही नहीं करता, तो वे राज्यपाल एवं उच्च न्यायालय का भी रुख करेंगे।
खबर से सबक: सांसद और विधायक प्रतिनिधियों की नियुक्ति पर सवाल
📌 संविधान का पालन सबसे ऊपर:
इस खबर से सबसे बड़ा सबक यही है कि किसी भी नियुक्ति या कार्य प्रणाली को संविधान और विधिक प्रावधानों के दायरे में रहकर ही लागू किया जाना चाहिए। अगर संविधान में किसी पद या प्रक्रिया का उल्लेख नहीं है, तो उस पर पुनर्विचार आवश्यक है।
📌 लोकतांत्रिक जवाबदेही जरूरी:
जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के नाम पर नियुक्त व्यक्ति अगर विधिक आधार के बिना काम कर रहे हैं, तो यह जनता की अपेक्षाओं और लोकतंत्र की पारदर्शिता के विपरीत है।
📌 सामान्य नागरिक भी उठा सकता है सवाल:
पत्रकार प्रदीप पाटकर द्वारा जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपना यह दर्शाता है कि एक जागरूक नागरिक भी व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठा सकता है, यदि उसे कोई विसंगति या संविधान-विरोधी प्रक्रिया दिखे।
📌 प्रशासन को पारदर्शिता बनाए रखनी चाहिए:
जिला प्रशासन और सरकार को चाहिए कि नियुक्तियों, आदेशों और प्रतिनिधित्व की प्रक्रिया में पूर्ण पारदर्शिता और वैधानिकता सुनिश्चित करें, ताकि भविष्य में किसी प्रकार का विवाद या विरोध उत्पन्न न हो।
मुख्य बिंदु जो ज्ञापन में उठाए गए :
सांसद एवं विधायक प्रतिनिधियों की नियुक्ति संविधानिक नहीं।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में भी इस तरह की किसी नियुक्ति का कोई प्रावधान नहीं।
ऐसे प्रतिनिधि जनप्रतिनिधियों के नाम पर सरकारी कार्यों में हस्तक्षेप कर रहे हैं।
जिले में सभी नियुक्त प्रतिनिधियों को तत्काल प्रभाव से हटाने की मांग।
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