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नई दिल्ली, 04 मई:
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने एक अनौपचारिक बातचीत के दौरान अपने व्यक्तित्व के कई अनछुए पहलुओं को साझा किया। एक दैनिक अखबार को दिए गए इंटरव्यू और पत्रकारों से शिष्टाचार मुलाकात के दौरान उन्होंने कहा, “मैं भले ही जज हूं, मगर दिल से पत्रकार हूं। हर केस की तह तक जाकर उसकी सच्चाई तक पहुंचने की कोशिश करता हूं।”
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वह तथ्यों की पड़ताल करते हैं और संदेह होने पर दस्तावेज़ों को ध्यान से देखते हैं, ताकि न्याय प्रक्रिया में छिपे तथ्यों को उजागर किया जा सके। उन्होंने कहा, “मैं दोनों पक्षों की दलीलों का पत्रकार की तरह विश्लेषण करता हूं कि जो प्रक्रिया बताई गई है, वह सही है या नहीं। कई बार ऐसे तथ्य सामने आते हैं, जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।”
संविधान सर्वोपरि, राजनीति नहीं:
विधायिका और कार्यपालिका द्वारा सुप्रीम कोर्ट पर दखल देने के आरोपों पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “हम न्याय करते हैं, बयानबाजी नहीं। हमारी नजर में सिर्फ दो पक्ष होते हैं, जिनके विवाद को संविधान के तहत हल करना होता है। न्यायपालिका का कार्य राजनीति नहीं, बल्कि संविधान द्वारा स्थापित मूल्यों की रक्षा करना है।”
संयम है जज की सबसे बड़ी ताकत:
एक अच्छे जज की विशेषता पर बात करते हुए उन्होंने संयम को सबसे महत्वपूर्ण गुण बताया। एक किस्सा साझा करते हुए उन्होंने कहा, “एक बार एक वकील चीफ जस्टिस के सामने भला-बुरा कह रहा था। मैंने उसे 15 मिनट बोलने दिया और फिर कहा कि चलिए चाय पीते हैं। वह तुरंत शांत हो गया। संयम कई काम बना देता है।”
बताते चलें कि जस्टिस सूर्यकांत सुप्रीम कोर्ट के भविष्य के संभावित 53वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) हो सकते हैं। मौजूदा CJI संजीव खन्ना और उनके बाद के CJI बीआर गवई के साथ उनकी यह मुलाकात पत्रकारों के साथ संवाद का हिस्सा थी।
जस्टिस सूर्यकांत का यह मानवीय और व्यावसायिक दृष्टिकोण न्यायपालिका में एक सकारात्मक दृष्टिकोण की मिसाल पेश करता है।
