आखिर कब थमेगी श्रमिकों की मौत और दुर्घटनाओं का सिलसिला?
सम्पादक:- रविशंकर गुप्ता
तिल्दा-नेवरा।
औद्योगिक विकास की चमक के पीछे छिपा अंधेरा लगातार गहराता जा रहा है। तिल्दा-नेवरा क्षेत्र, जिसे रायपुर जिले का औद्योगिक हृदय कहा जाता है, वहां श्रमिकों के शोषण और उद्योग प्रबंधन की लापरवाही के मामले अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। कई घटनाएं दबा दी जाती हैं, जबकि कुछ मामलों में उद्योग प्रबंधन अपनी “समान्वय कला” से उन्हें रफा-दफा कर देता है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि उद्योग स्थापित करते समय प्रबंधन क्षेत्र के विकास, पर्यावरण संरक्षण और रोजगार सृजन की बड़ी-बड़ी बातें करता है, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही बयां करती है।
उद्योगों की लापरवाही के चलते न केवल श्रमिकों की जान जा रही है, बल्कि आसपास के लोग भी प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं।
लगातार हादसे, प्रबंधन पर गंभीर आरोप
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार, ग्राम सरोरा स्थित “संभव स्पंज उद्योग” में श्रमिकों के शोषण और सुरक्षा की अनदेखी के गंभीर आरोप लगे हैं। बताया जा रहा है कि इस उद्योग में आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं, जिन पर प्रबंधन पर्दा डाल देता है।
हाल ही में उद्योग के यूनिट टू (ग्राम केसदा) में एक श्रमिक की हृदयघात से मौत हुई। मृतक के परिजनों ने अस्पताल परिसर में प्रदर्शन किया और आरोप लगाया कि श्रमिक पूरी तरह स्वस्थ था, फिर अचानक उसकी मौत कैसे हुई? बाद में प्रबंधन ने मुआवजा देकर मामला शांत करा लिया।
इसी बीच, सरोरा स्थित यूनिट वन में करंट लगने से एक अन्य श्रमिक की मौत हो गई। मृतक को ओवरटाइम में दूसरे यूनिट में भेजा गया था, जहां देर रात वेल्डिंग करते समय झपकी लगने पर वह बिजली के संपर्क में आ गया।
इतना ही नहीं, बीते माह इसी उद्योग में तीन श्रमिक हाइड्रोलिक सिलेंडर के विस्फोट में झुलस गए, जिनमें से एक की मौत हो गई और दो घायल हुए।
श्रम अधिनियम का खुला उल्लंघन
श्रमिकों का कहना है कि उद्योग में 12 घंटे से अधिक काम करवाया जाता है, और सुरक्षा के बुनियादी नियमों का पालन नहीं होता। मजदूरों की मौत के बाद भी उचित जांच नहीं की जाती, जिससे प्रबंधन की जवाबदेही पर गंभीर सवाल उठते हैं।
प्रबंधन मौन, सवाल बरकरार
इन घटनाओं पर जब उद्योग प्रबंधन से संपर्क करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया और न ही कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया दी।
अब सवाल यह है कि —
आखिर कब तक औद्योगिक विकास की कीमत आम श्रमिकों की जान से चुकाई जाती रहेगी?
